हिंदुओं के लिए सावन का महिना बहुत ही पावन और महत्वपूर्ण माना जाता है। क्योंकि ये भगवान भोलेनाथ का सबसे प्रिय महिना माना जाता है। मान्यताओं के मुताबिक, सावन में शराब और मांस खाने से इसका बुरा प्रभाव न सिर्फ सेहत बल्कि भविष्य पर पड़ता है। केवल धर्म ही नहीं, बल्कि साइंस भी मानती है कि सावन में तामसिक यानी कि शराब, मीट, तेल मसाले आदि का इस्तेमाल कम करना चाहिए। आइए जानते हैं कि साइंस के नजरिए में सावन में मीट और शराब छोड़ना कितना सही है.
हिंदू धर्म में सावन का महीना बेहद पावन माना जाता है। इस महीने में भगवान शिव के भक्त कावड़ लेकर शिव मंदिर जाते है। इस साल सावन का महीना 22 जुलाई से शुरू होकर और 19 अगस्त तक चलेगा।
कमजोर इम्युनिटी
आयुर्वेद के अनुसार सावन के महीने में शरीर की इम्युनिटी कमजोर हो जाती है। शराब-मांस या तेल-मसाला और तीखा खाने से हमारे शरीर का पाचन तंत्र पर जोर पड़ेगा, क्योंकि इन्हें पचाना मुश्किल होता है। पाचन शक्ति कमजोर होने से नॉन-वेज फूड आंतों में सड़ने लगता है। इससे इम्युनिटी पर भी बुरा असर पड़ता है। नॉनवेज और मसालेदार खाना एक तरह से बीमारियों का कारण बन सकता है।
आयुर्वेद सलाह देता है कि सावन महीने में हल्का खाना ही खाना चाहिए, जो आसानी से पच जाए। सावन में सोमवार के व्रत को भी इम्यूनिटी और पाचन शक्ति कमजोर होने से ही जोड़ा जाता है.
बारिश में कीड़े-मकोड़े की संख्या बढ़ जाना भी एक कारण
सावन के मौसम में लगातार बारिश होने की वजह से कीड़े-मकोड़े की संख्या बढ़ जाती है। इनसे संक्रामक बीमारियां फैलती हैं। साइंस मानती है कि संक्रामक बीमारियां सबसे पहले जीवों को अपना शिकार बनाती हैं। जिसके बाद इंसान मांस-मछली का सेवन करता है। और जीवों में संक्रमण के कारण इंसान बीमार पड़ सकता है। इसीलिए सावन में इस तरह के खाने को छोड़ देने की सलाह दी जाती है।
संक्रमण से जानवर भी हो जाते हैं बीमार
सावन के महीने को जानवरों की सेहत के लिए भी ठीक नहीं माना जाता। जानवर जो घास-फूस खाते हैं, उसके साथ अनजाने में बहुत सारे जहरीले कीड़े भी खा जाते हैं। इससे जानवर बीमार हो जाते हैं। उनके शरीर में संक्रमण फैल जाता है। ऐसे जानवरों का मांस इंसानों के शरीर के लिए बहुत ही नुकसानदायक साबित होता है। इसलिए सावन में मांस-मछली और शराब का सेवन करना हानिकारक होता है।