आम तौर पर बीमारी में डॉक्टर हमें कैप्सूल प्रेसक्राइब करते हैं। कैप्सूल को ध्यान से देखने से पता चलता है कि कैप्सूल दो हिस्से से मिलकर बनता है। बाहरी हिस्सा, जो रबड़ की तरह दिखाई देता है, वहीं, अंदर के हिस्से में दवा भरी होती है, जो शरीर में जाते ही घुल जाती है।
क्या आपके दिमाग में भी कभी ये सवाल आया है कि कैप्सूल के कवर किस चीज के बने होते हैं? कभी सोचा है कि इस कवर का शरीर में जाकर क्या होता है? अगर आपके दिमाग में ये सवाल आए हैं हम इसका जवाब आपको देते हैं।
आपको बता दें कि ये कैप्सूल का मुलायम सा दिखने वाला हिस्सा दरअसल जिलेटिन से बना होता है। ये जिलेटिन जानवरों में पाया जाता है, ज्यादातर कैप्सूल्स बनाने के लिए सुअर और बैल की हड्डियों, चमड़े और बड़ी आंत का इस्तेमाल किया जाता है। जानवरों की हड्डियों से बने इन कैप्सूल का सेवन मांसाहारी और शाकाहारी दोनों तरह के लोग करते हैं। अगर भारत की बात करें तो यहां 98% कैप्सूल जिलेटिन से ही बनाए जाते हैं, क्योंकि ये सस्ते और आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं…हालांकि भारत सरकार ने बीते दिनों में पेड़-पौधों के सेल्यूलोज से कैप्सूल बनाने की बात कही है। इसलिए फार्मा इंडस्ट्री में वेजिटेरियन कैप्सूल का भी प्रचलन है। ऐसे कैप्सूल जिलेटिन से न बनाकर सेलुलोज से बनाए जाते हैं। इस सेलुलोज पड़ो में पाया जाता है। सेलुलोज देवदार के रस से बनाया जाता है। इसमें जानवरों के किसी भी हिस्से का इस्तेमाल नहीं किया जाता। हालांकि वेजिटेरियन कैप्सूल का फोरमुला बहुत महंगा है, इसके बावजूद इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है। वजह ये है कि वेजिटेरियन कैप्सूल का सेवन मांसाहारी और शाकाहारी दोनों तरह के लोग कर सकते है।
वेजिटेरियन कैप्सूल की प्रकृति
वेजिटेरियन कैप्सूल में दो तत्व पाया जाता है – पहला है प्यूरिफाइड पानी और हाइड्रोक्सी प्रोपाइल मेथाइल सेल्युलोज या HPMC. ये दोनों तत्व पूरी तरह से कुदरती होते हैं जिनका शरीर पर कोई असर नहीं पड़ता। वेजिटेरियन आधारित कैप्सूल में लिक्विड, जेल या दवाओं के पाउडर भरे जाते हैं। इसमें कोई भी प्रिजर्वेटिव, शुगर, स्टार्च या अन्य कोई एडेड इनग्रेडिएंट नहीं मिलाया जाता। इस तरह के कैप्सूल को हमारा पाचन तंत्र आसानी से पचा लेता है और यह सामान्य तौर पर जीओएम प्री होता है।
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