एडवर्ड ने कहा कि धरती पर इंसानों के लिए खाने की चीजें पैदा करने की एक सीमा है.
अगर धरती का हर इंसान शाकाहारी भी बन जाता है तो दुनिया भर के किसान और उनके खेत इतना खाना नहीं पैदा कर पाएंगे जिससे इंसानों की जरूरतों को पूरा किया जा सके.
उन्होंने कहा कि आने वाले समय में दुनिया की आबादी इतनी ज्यादा बढ़ जाएगी कि हर किसी की खाने की डिमांड (Food demand of human beings on earth) को पूरा नहीं किया जा सकेगा.
अगले 27 सालों में दुनिया की आबादी 10 बिलियन यानी 1,000 करोड़ पहुंच जाएगी.
अगर डिमांड की बात करें तो ये साल 2017 की तुलना में 70 फीसदी तक बढ़ जाएगी.
जानकारों ने बढ़ती आबादी और खाने की पैदावार की गड़ना करने के बाद ये नतीजा निकाला है कि अगले 40 सालों में इंसान को उतना खाना पैदा करना पड़ेगा जितना पिछले 8 हजार सालों में इंसान ने नहीं पैदा किया है.
वैज्ञानिकों का दावा है कि ये धरती 1000 करोड़ लोगों को तो खाना खिला पाएगी मगर उसके बाद धरती पर भी दबाव पड़ने लगेगा.
लोग अपनी जरूरत से ज्यादा खाना खा रहे हैं और उसे बर्बाद कर रहे हैं. ऐसे में धरती पर खाने को पैदा करने का दबाव भी बढ़ता जाएगा.
उदाहरण के तौर पर मक्के के बदले मीट पैदा करने में 75 गुना ज्यादा ऊर्जा का इस्तेमाल होता है. उन्होंने दावा किया कि 2050 तक दुनिया के सभी देशों में खाने की कमी होने लगेगी.
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