देश में इन दिनों बिजली का भीषण संकट छाया हुआ है. थर्मल पावर प्लांटों में कोयले का स्टॉक खत्म होने के कगार पर है.

नई सप्लाई में दिक्कतें आ रही हैं. इससे पर्याप्त बिजली पैदा नहीं हो पा रही है. भीषण गर्मी और आर्थिक गतिविधियों की वजह से डिमांड आसमान पर हैं. ऐसे में लोगों को 10-10 घंटे तक अघोषित बिजली कटौती का सामना कर पड़ रहा है.

बिजली मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि मौजूदा बिजली संकट का सबसे बड़ा कारण संयंत्रों में कोयले की कमी है. परिवहन की समस्याओं की वजह से कोयला प्लांटों तक नहीं पहुंच पा रहा है. कई राज्यों की सरकारें आरोप लगा रही हैं कि खदानों से प्लांटों तक कोयला लाने के लिए मालगाड़ियों की कमी है.

इसे देखते हुए रेल मंत्रालय ने उपाय किए हैं. मालगाड़ियों के लिए रास्ता बनाने के वास्ते करीब 21 जोड़ी यात्री ट्रेनों के 753 फेरों को रद्द कर दिया गया है. इससे अगले महीने तक कोयला लेकर आने वाली मालगाड़ियों को रास्ता साफ मिलेगा.

रेलवे के एक अधिकारी ने दावा किया कि बिजली मंत्रालय ने इस साल रेलवे से 421 रैक मांगे थे, जिसमें से 411 उपलब्ध करा दिए गए. लेकिन असली समस्या डिब्बों की कमी की नहीं, कोयला लदान और उतारने में लगने वाले समय की है. उन्होंने दावा किया कि इसमें 10 से 15 दिन तक लग जा रहे हैं, जिससे मालगाड़ी के डिब्बे खाली नहीं हो पा रहे.

इस बार बिजली की डिमांड तेजी से बढ़ी है. पावर सिस्टम ऑपरेशन कोऑपरेशन (Posoco) का 28 अप्रैल का डाटा बताता है कि पिछले साल इसी दिन जहां पीक पावर शॉर्टेज 450 मेगावॉट थी, वो इस साल 23 गुना बढ़कर 10,778 मेगावॉट हो गई है.

 कटौती ज्यादातर ग्रामीण इलाकों और छोटे शहरों में हो रही है. अधिकारी बिजली की डिमांड में भीषण बढ़ोतरी की एक वजह इस बार जल्दी गर्मी आने को भी बता रहे हैं.

सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी का डेली कोल स्टॉक डाटा बताता है कि 28 अप्रैल को देश के 173 कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में से 108 में कोयले का स्टॉक क्रिटिकल लेवल पर था.

 जब प्लांट में आमतौर पर रखे जाने वाले स्टॉक से 25 फीसदी कम कोयला हो जाता है, तब उसे क्रिटिकल माना जाता है.

कोरोना महामारी के बाद पटरी पर आईं आर्थिक गतिविधियों के कारण भी बिजली की मांग बढ़ी है.

 खबर के मुताबिक, बिजली मंत्रालय के अधिकारी इस संकट के पीछे एक और वजह बताते हैं. वह कहते हैं कि बिजली उत्पादन और वितरण कंपनियों के पास जरूरत के वक्त ग्रिड से आपातकालीन बिजली खरीदने का विकल्प होता है. लेकिन ये बिजली महंगी होती है. इसीलिए कई राज्यों में कई कंपनियां, चाहे वो सरकारी हों या प्राइवेट, ग्रिड से स्पॉट पावर नहीं खरीद रही हैं.

इसके बजाय वो कटौती को तवज्जो दे रही हैं. अधिकारी ये भी आरोप लगाते हैं कि कई कंपनियां तो ग्रिड को बिजली न भेजकर सीधे बेच दे रही हैं और मुनाफा कमा रही हैं.

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